Monday 25 March 2013

चाची हो तो ऐसी


गर्मी की छुट्टियोंमें चाचू मुझेशहर
 बुला लियाकरते थे। मुझेभी उनके पासबहुत
 अच्छा लगता था।चाची मुझे बहुतप्यार
 करती थी।उन्हीं की मेहरबानीसे मेरे पास
 एक मंहगीमोटरसाईकल और एक
 बढ़िया सेलफोन भीथा। इसलिये मुझेयह
 भी आशारहती थी किचाची मुझे कुछना कुछ
 तो दिलाही देगी। मेराऔर चाची काप्यार
 देख कएचाचू भी बहुतखुश थे। मैंतो अब
 कॉलेज जाने लगाथा। बड़ा होगया था।
 चाची कीआसक्ति भरी नजरेमैं पहचानने
 भी लगाथा, हांलाकि वोमुझसे पन्द्रह वर्ष
 बड़ी थी।अक्सर वो मेरेनहाने के समयमुझे
 तौलिया देने जाती थी औरमुझसे
 छेड़खानी भी करतीथी। मुझे सचकहूँ
 तो बड़ाही आनन्द आताथा। वो मेरालण्ड
 खड़ा करजाती थी। फिरमुझे मुठ
 मारनी ही पड़तीथी। मैंने चाचीके नाम
 की बहुतबार मुठ भीमारी थी। मैंभी उन्हें
 पूरा मौकादेता था किवो मेरे अंगोंको छू लें
 और मेरेसाथ मस्ती करें।
 इसी मस्तीके दौरान चाचीने एक बारमेरे
 कसे हुयेचूतड़ों को सहलाभी दिया थाऔर
 बोली थी- तेरे चूतड़ तोबहुत कसे हुयेऔर
 सख्त हैं!
 तब मैंनेजल्दी से चाचीके चूतड़ दबादिये
 कहा- हायचाची, आपके तोबहुत नरम हैं!
 धत्त, बड़ा शरारतीहै रे तूतो ! और वोछिटक
 कर दूरहो गई।
 इसी तरहउन्होंने एक बारनहाते हुये
 मेरा सख्तलण्ड पकड़ लियाऔर बोली- राजू,
 अब तोतेरे लिए दुल्हनियालानी ही पड़ेगी,
 वरना यहतो कुंवारा हीरह जायेगा।
 मैंने मौका देखाऔर बिना किसीहिचक
 चाची कीभारी चूचियाँ पकड़ली और दबाने
 लगा- चाची, आप जो होना, प्लीज
 मेरा कंवारापनतोड़ दो !
 वो मेराहाथ अपनी चूचियोंसे हटाने लगी।पर
 मैंने उन्हें औरदबा दिया औरउन्हें
 अपनी बाहोंमें कस लिया।
 ओह छोड़ना, तू मुझेबिल्कुल मत छूना,
 वर्ना पिट जायेगा!
 उनकी धमकीसे मैं डरगया और उनसेछिटक
 गया। वोहंसती हुई चलीगई। मैं असंजसमें
 उन्हें देखता रहगया।
 रात केनौ बज रहेथे। मैं रोजकी तरह
 टीवी देखरहा था। चाचीभी मेरे समीपआकर
 बैठ गई।हम बातें भीकरते जा रहेथे और
 टीवी भीदेखते जा रहेथे। अचानक चाचीके
 कोमल हाथमेरी जांघ पर गये। मैंसिहर
 सा गया।मुझे पता थाकि चाची अब
 क्या करनेवाली थी। मैंउठ कर जानेलगा।
 अरे बैठतो जाओ राजू, मैं कौन तुम्हेंखाने
 जा रहीहूँ।
 मैं बैठगया। मेरी जांघके आस पासहाथ फ़ेरते
 हुये वोमुझे गुदगुदी सीकरने लगी। उनकाहाथ
 अब तकदो बार मेरेलण्ड को भीछू चुका था।
 बेचारा लण्ड, स्त्रीस्पर्श पाकर
 वो अपनासर उठाने लगाथा। मेरे मनमें
 भी एकबार तो तरंगसी उठने लगी।
 चाची कोतो बस इसीका जैसे इन्तज़ारथा।
 मेरे पायजामेका उठान देखकर वो खुश
 हो उठीथी। उसने अपनाकोमल सा हाथअब
 मेरे लण्डके ऊपर रखदिया था।
 मैं हटाताकैसे भला, मस्तीसी जो चढ़ने
 लगी थी।अब मेरा ध्यानटीवी की तरफ़
 बिल्कुल नहीं था।बस मैं इन्तज़ारकरने
 लगा थाकि चाची अबक्या करती है।उन्होंने
 मेरा लण्डअब धीरे सेदबा दिया।
 उत्तेजना के मारेलण्ड कड़क होकर
 सीधा तनगया। चाची कोआराम हो गया...
 वो अबआराम से मेरेपूरे डण्डे कोहाथ से
 सहलाने लगी थी।लण्ड
 लम्बा भी थासो स्पष्ट रूपसे बहुत हीबाहर
 की ओरउभर आया था।मैं अपने
 चूतड़ों को ऊपरउठा कर लण्डको और
 भी बाहरउभार रहा था।
 तभी भाभीने मेरे पायजामेका नाड़ा खोल
 दिया। मैंने चाचीकी ओर देखाओर जल्दी से
 अपना पायजामाथाम लिया। तभीउन्होंने
 जोर सेझटक कर मेरापायजामा जांघों तक
 खींच दिया।मेरा लण्ड एकदमसे स्वतन्त्र
 हो गयाऔर बाहर निकलकर झूमने लगा।
 "अरे चाचीक्या करती हो?" मेरा दिल
 किलकारी मारने लगा।
 "तेरी जवानीका आनन्द लेरही हूँ, चलहाथ
 हटा अपनेलौड़े से !"
 उन्होंने मेरा हाथहटा कर मेरेतने हुये लण्ड
 को पकड़लिया। मैंने इसमेंउन्हें सहायता की।
 "मस्त लम्बाहै साला !" कहतेहुए उन्होंने मेरे
 लण्ड कोऊपर से नीचेतक हाथों सेमल
 दिया। मेरे लण्डसे दो खुशीकी बून्दें निकल
 आई।
 "बस अबयूँ ही बैठेरह, हिलना मत!"
 वो टीवीदेखती जा रहीथी और मेरालण्ड
 मलती जारही थी। मुझेलण्ड मलने सेबहुत
 मजा रहा था। मैंनेभी जोश जोशमें
 चाची कीचूचियाँ दबा दी।पर अगले हीपल
 उन्होंने मेरा हाथहटा दिया।
 "आराम सेबैठ कर देखमैं क्या करतीहूँ !"
 यह कहकर भाभी नेमेरे तने हुयेलण्ड
 को जोरसे मुठ मारनाचालू कर दिया।
 मैं कराहउठा। मैं चाचीसे लिपटता गया।
 वो मुझेधक्के दे करहटाती रही, परलण्ड
 नहीं छोड़ाउन्होंने। वो लण्डको कठोर और
 कठोरतम तरीके सेघिसने लगी।
 मैं तड़पउठा, बल खानेलगा। पर
 उसकी तेजीऔर बढ़ गई।मैं सोफ़े परलोट
 लगाने लगा परचाची को जराभी रहम
 नहीं आया।वो मेरा लण्डछोड़ने को तैयार
 ही नहींथी। मैंने सोफ़ेपर ही अपनीदोनों टांगें
 ऊपर करली और बेबससा मस्ती केआलम में
 डूब चला।तभी मेरे मुखसे एक आहनिकल
 पड़ी औरमेरा लण्ड फ़ुफ़कारतेहुये बरसने
 लगा। बहुतसा वीर्य मेरेपेट पर औरइधर
 उधर बिखरनेलगा। चाची उसेदेख कर
 खुशी सेनिहाल हो गई।मेरे वीर्य कोउन्होने
 मेरे पेटपर मल दिया।अपनी एक अंगुलीसे
 मेरा गाढ़ावीर्य लेकर चूसनेलगी। मैं निढाल
 सा सोफ़ेपर ही लेटगया। चाची भीमेरे ऊपर
 आकर लेटगई और मुझेचूमने लगी।
 "चाची, बस एकबार चुदा लो!"
 "राजू, ऐसी बातना कर !
 उंह, भलायह कैसी चाचीहै,
 मर्दों का तोकबाड़ा कर देतीहै पर खुद
 को हाथही नहीं लगानेदेती है। मुझे
 क्या भलाक्या आपत्ति होसकती थी।
 फ़्री में मजाकरवा देती हैयही बहुत है।
 सवेरे ही सवेरेमेरी नींद अचानकउचट गई।
 मुझे कुछअजीब सा लगाजैसे कोई मेरेलण्ड
 को सहलारहा है। मेरीआदत पेट केबल सोने
 की थी।मैं
 अपनी छोटीसी वीआईपी फ़्रेंचीचड्डी में
 सोया करताथा। मेरा लण्डमेरी दोनों टांगोके
 मध्य मेंसे दबा हुआअकड़ा हुआ नीचे
 निकला हुआ था।मैं आनन्द केकारण वैसे
 ही उल्टालेटा रहा। तोये
 चाची हीथी जो धीरेधीरे मेरे लण्ड
 को मेरीदोनों टांगों केबीच में सेखींच कर
 बाहर निकालकर सहला रहीथी।
 मेरी चड्डीथोड़ी सी नीचेसरकी हुई थी।मेरे
 दोनों कसे हुयेगाण्ड के गोलेपंखे
 की ठण्डीहवा से सिहरसे रहे थे।मेरी नई
 उभरती जवानी मेंज्वार सा आनेलगा। ओह
 यह चाचीक्या करने लगीहै। मेरा लण्डबहुत
 सख्त होचुका था औरनीचे से लम्बाहो कर
 चाची केहाथ में धीरेधीरे मसला जारहा था।
 तभी उन्होंनेमेरे सुपारे कीचमड़ी पलट दीऔर
 लण्ड कीकोमल धार परअपनी अंगुली घुमाने
 लगी। मेरीआंखें मस्ती मेंबन्द होने लगीथी।
 "अब बनोमत राजू, अपनीआँखें खोल दो!"
 "चाची, बहुत मजा रहा है, धीरे धीरे खींच
 कर औरमलो लण्ड को!"
 " रहाहै ना मजा, अब जरा अपनीये
 चड्डी तो नीचेसरका !"
 "चाची खींचदो ना आप... "
 "अच्छा यह ले..." और चाची नेमेरी तंग
 चड्डी नीचे खींचकर उतार दी।
 "अब राजूजरा घोड़ा बन, और
 मजा आयेगा!"
 "सच चाची, क्या करोगी ...?"
 "बस देखतेजाओ"
 मैं धीरेसे घुटनो केबल हो करघोड़ी जैसा बन
 गया औरअपनी गाण्ड उभारदी।
 चाची नेअपनी एक अंगुलीमें थूक लगायाऔर
 उसे धीरेसे मेरी गाण्डके दरार केबीचोंबीच
 छेद पररख दिया। मुझेतेज गुदगुदी सीलगी।
 वो धीरेधीरे पहले उसेसहलाती रही औरथूक
 लगा करउसे चिकना करतीरही। फिर धीरेसे
 झुक करअपनी जीभ कोतिकोना बना कर
 मेरी गाण्डके छिद्र कोचाट लिया, फिरजीभ
 से मेरेछेद पर गुदगुदीकरती रही। मैंबस धीरे
 धीरे आहेभरता रहा। आह,
 चाची होतो ऐसी।
 तभी मेरेलम्बूतरे से लण्डपर उनका हाथघूम
 गया। उन्होंनेमेरी टांगों केबीच से फिरलण्ड
 को खींचकर पीछे हीनिकाल लिया। फिरएक
 थूकने की आवाजआई और लण्डथूक से भर
 गया। मेरेपीछे से लण्डनिकाल कर वोजाने
 क्या क्याकरने लगी थी।
 मेरे लण्डके डण्डे परउनका हाथ हौले-हौले से
 आगे पीछेचलने लगा। मेरेमुख से
 मस्ती की सिसकारियाँफ़ूटने लगी।
 कभी तोचाची अपनी अंगुलीमेरी गाण्ड में
 चलाती तो कभीजीभ को उसमेघुसाने
 का यत्नकरती। मेरा लण्डजबरदस्त तन्नाने
 लगा था।सुपारा फ़ूल करटमाटर
 जैसा होगया। मेरे लण्डसे वीर्य कीकुछ बूंदें
 बाहर निकलनेलगी थी। लालसुर्ख
 सुपारा कभी-कभीचाची के मुखमें भी
 जाता था।वो मेरे लण्डके डन्डे परबराबर
 धीरे धीरेपर दबा करघर्षण करने लगीथी।
 मेरी सहनशक्ति जवाब देनेलगी थी।
 मेरी कमरभी अब चलनेलगी थी। चाचीसमझ
 गई थीकि मेरी इससेअधिक झेलने
 की शक्तिनहीं है।
 उन्होंने मेरा लण्डअब जोर सेदबा लिया और
 ताकत सेदबा लगा करऊपर नीचे करनेलगी।
 मेरे लण्डमें से अबधीरे धीरे रसबूंद बूंद
 करके नीचेटपकने लगा था।जिसे वो बारबार
 जीभ सेचाट लेती थी।मैं जैसे तड़पउठा।
 "चाची, आह , मैंतो गया, हायरे..."
 उसके हाथअब सधे हुयेताकत से भरेहुये
 लण्ड केसुपारे और डण्डेको मसलने लगेथे
 बल्कि कहो तोलण्ड में टूटनसी होने
 लगी थी।मेरा लण्ड बराबरचूने लगा था।
 उनके हाथअब तेजी सेचलने लगे थे।
 मेरी जानजैसे निकलने वालीथी और आह...
 हाय रे... फिर मेरा रसलण्ड में सेफ़ूट पड़ा।
 चाची नेरस निकलते हीउसे अपने मुखसे
 लगा लियाऔर और उसेचूस चूस करपीने
 लगी। मैंबुरी तरह सेहांफ़ उठा था।मैं
 बुरी तरहसे झड़ चुकाथा।
 "चलो अब, नाश्ता भी करलो, बहुत
 हो गया!"
 "उह चाची, इतना कुछ करलिया अब एकबार
 मेरे नीचेतो जाओ!"
 "चल हटरे चाची कोचोदेगा क्या... पागल !"
 "क्या चाची, एक तो आपमेरे लण्ड कोरगड़
 कर रखदेती हो दूसरीऔर अपने आप
 को... ...!"
 मैं अपनेपांव पटकता हुआबाथरूम में
 चला गया।चाची तो जैसेकुछ हुआ हीनहीं,
 ऐसा व्यवहारकरती रही। समयहोने पर मैं
 आने कॉलेजचला गया। मुझेपता था किउससे
 कोई भीविनती करना बेकारथा।
 आज रातको तो चाचीटीवी देखने
 भी नहींआई। वो अपनेकमरे में हीथी। मैंने
 धीरे सेझांक कर चाचीके कमरे मेंदेखा।
 वो एकदमनंगी बिस्तर परलेटी हुई तड़प
 रही थीऔर अपने अंगोंको मसल रहीथी।
 आह ! मेरालण्ड कड़क होनेलगा, फ़ूल कर
 तन्ना गया। मैंनेअपना पायजामा उताराऔर
 पूर्ण रूप सेनग्न हो गया।मैंने अपना लण्ड
 सहलाया और उसेहिला कर देखा।पूरा तन
 चुका था, चोदने के लियेएकदम तैयार था।
 मेरा लण्डसीधा और कड़कहो चुका था।मैं
 धीरे सेउनके पास पहुंचाऔर उनकी चौड़ीहुई
 टांगों के मध्यचूत में सेनिकलता पानी देखने
 लगा।
 बस, मेरासंयम टूट गया।मैं बिस्तर केऊपर
 चढ़ आयाऔर चाची कोबिना छुये हाथोंके
 बल उनकेऊपर लण्ड तानकर उनके ऊपर
 बिना छुएनिशाने पर गया। अब मैंनेशरीर
 को नीचेकिया और उनकीचूत पर
 अपना लण्डरख दिया।
 चौंक करचाची ने अपनीबड़ी बड़ी आंखेंखोल
 दी। परतब तक देरहो चुकी थी।पलक मारते
 ही मेरालण्ड उसकी चूतमें मक्खन में
 छुरी कीतरह घुसता चलागया।
 मेरे मनको बहुत ठण्डकमिली। मैंने चाचीसे
 लिपटते हुये दोतीन धक्के लगादिये। चाची के
 मुख सेआनन्द भरी चीखनिकल गई थी।पर
 चाची मेंबला की ताकत गई थी।उन्होंने
 मुझे बगलमें लुढ़का दियाऔर लण्ड कोबाहर
 निकाल दिया।
 "बहुत जोरमार रहा हैना, ला मैंइसका रस
 निकाल दूँ !"
 कह करभाभी लपक करमेरे ऊपर गाण्ड
 को मेरीतरफ़ करके चढ़गई और मेरेलण्ड
 को जोरजोर से मुठमारने लगी, फिरउसे
 अपने मुखमें ले लिया।मेरे मुख केसामने
 उसकी चूतथी, सो मैंनेभी उसे चूसनाशुरू कर
 दिया। वह बहुतउत्तेजना में होनेके कारण
 जल्दी ही झड़गई। उसके बलिष्ठ
 प्रहारों को भीमैं कितना झेलता, कुछ
 ही मिनटोंमें मेरा वीर्यभी लण्ड सेछलक
 पड़ा। दूसरी बारचाची ने मेरापूरा वीर्य एक
 बार औरपी लिया। फिरवो धीरे सेउतर कर
 पलंग सेनीचे उतर आई।
 उसने फिरमेरा हाथ पकड़ाऔर कपड़े उठाये
 और मुझेबाहर का रास्तादिखा दिया।
 "अब समझेराजू, बस जोकुछ करना है, बाहर
 ही बाहरसे करो, मुझेचोदने की कोशिश
 नहीं करना!"
 "चाची ऐसाक्या है जोमुझे कुछ
 भी नहींकरने देती हो?"
 "मेरा तन-मन सबकुछ राजेश काहै, तेरे चाचू
 का भीनहीं है, बसजवानी कटती नहींहै,
 सो तुझपर मन गया। मेरे तनपर मेरे
 महबूब का हीहक है।"
 चाची नेअपना बेडरूम कादरवाजा धड़ाम से
 बन्द करदिया।
 मैं बाहरखड़ा खड़ा सोचताही रह गया......
 आह रे, बेदर्द चाची...

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